..... कुछ बूँदें मेरे मन के सागर से

"दोस्ती"

एक उदासी सी थी जीवन में

न जाने क्यूँ एक खालीपन सा था

होठो पर हसी तो ठहरी थी पर

न जाने क्यूँ भारी मन सा था

ढूंढ रही थी मेरी निगाहे किसी को

पर किसी की निगाहों में वो अपनापन सा न था।



अचानक दूर से एक चेहरा आता दिखाई दिया

सादगी भरा जिसमे वो अपनापन सा दिखाई दिया

सामने आते ही उसने अपने हाथो को मेरे आगे बढ़ा दिया

जिसे मैंने भी थामने की कोशिश की

और तब शुरुआत हुई एक नए रिश्ते की

जिसे हमने 'दोस्ती' का नाम दिया।

3 comments:

मनोज कुमार said...

अच्छी रचना। बधाई।

Neha said...

ji dhanyavaad :-)

Rohit Singh said...

udassi ko dho daliye.....dosti kar daliye....bhagwaan ki bheji nemat hai...

bdaia kavita hai...

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..Discovering within... ;) Well I have completed my Integrated B.Tech-M.Tech (Biotech) and now working as CSIR-SRF in BIT, Mesra.Though I am very naive to write poems, but I found this medium the best to express the feelings (mine as well as others). So your valuable suggestions/comments are most welcome :-)

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