..... कुछ बूँदें मेरे मन के सागर से

दूरियां

दिल को इस बात का आज एहसास हो रहा है,
कोई अपना सा लोगो की भीड़ में कहीं खो रहा है,
चाह कर भी नहीं रोक पा रही हूँ मैं उसे,
बस हर पल वो मुझसे दूर, बहुत दूर हो रहा है ...

आज ये रिश्तो की डोर मुझसे नहीं संभल रही है,
दूरियां अब डर बनकर क्यूँ दिल में पल रही है,
आलम ये है की बस उस डोर के टूटने का इंतज़ार हो रहा है,
दिल को इस बात का आज एहसास हो रहा है ...

माना की इसमें गलती कुछ हमारी, कुछ तुम्हारी होगी,
पर जो रिश्ता टूटेगा, वो तो दोस्ती हमारी होगी,
कुछ भी तो नहीं रह जायेगा फिर हमारे बीच,
जो कुछ रहेगा वो तो दूरियों की बड़ी खाई होगी ...

कहने को तो दूर हो जायेंगे तुमसे हम,
पर उन दूरियों में भी तुमको ही पाएंगे हम,
हाल तो कुछ ऐसा होगा हमारा कि,
भूल कर भी तुमको न भूल पाएंगे हम...

दिल को इस बात का आज एहसास हो रहा है ,
कोई अपना सा लोगो कि भीड़ में कहीं खो रहा है ,
चाह कर भी नहीं रोक पा रही हूँ मैं उसे और ...
न चाहते हुए भी कहीं न कहीं मेरा दिल रो रहा है।

1 comments:

हास्यफुहार said...

बहुत अच्छी रचना। बधाई।

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..Discovering within... ;) Well I have completed my Integrated B.Tech-M.Tech (Biotech) and now working as CSIR-SRF in BIT, Mesra.Though I am very naive to write poems, but I found this medium the best to express the feelings (mine as well as others). So your valuable suggestions/comments are most welcome :-)

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