..... कुछ बूँदें मेरे मन के सागर से

दिल को आदत सी हो गयी है चोट खाने की

तुमसे दर्द पाकर भी मुस्कुराने की ....


ये जानते हुए की तुम आओगे नहीं कभी

फिर भी न जाने क्यूँ आस लगी है तुम्हारे आने की

दिल को आदत सी हो गयी है चोट खाने की

तुमसे दर्द पाकर भी मुस्कुराने की ...


ये जानते हुए की तुम्हे मुझे सुनना पसंद नहीं

फिर भी आदत सी है तुम्हे हर बात सुनाने की

ये जानते हुए की तुम्हे मेरी बातो में कोई दिलचस्पी नहीं

फिर भी आदत सी हो गयी है तुम्हे दिल की हर बात बताने की

तुमसे दर्द पाकर भी मुस्कुराने की ...

कहाँ गया वो बचपन ...

कहाँ गया वो बचपन,

भोला सा वो मन ...

वो दादी-नानी की कहानियां,

वो मिट्टी का आँगन...


वो घर-घर खेलना

गुड्डे-गुड़ियों की शादी रचाना

वो दोस्तों के साथ लड़ना

किसी से रूठना, किसी को मनाना ...


वो बारिशों में भीगना

वो कागज़ की नाव को तैराना

वो मेलों में घूमने का आनंद उठाना

और सर्कस की भीड़ में खो जाना


वो आइसक्रीम देखकर खुश हो जाना

वो चाकलेट्स के लिए जिद्द मानना

वो पापा की डर से पढ़ना

वो मम्मी से मार खाना

वो भैया से बाते छुपाना

और दीदी को बताना ...


कहाँ गया वो बचपन,

भोला सा वो मन ...

वो रात तो भूतो से डरना

और मम्मी से लिपट कर सोना

अब तो बस इस भागती दौड़ती जिंदगी में

जो बच गया है सोचने को

वो है बचपन की यादों का खिलौना....

आभार एवं अनुरोध

मैं उन सभी पाठक गणों का आभार व्यक्त करना चाहती हूँ जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय दिया मेरी लिखी कविताओ को पढने के लिए , अपने विचार को व्यक्त और मुझे प्रेरित करने के लिए । एक अनुरोध भी है कि कृपया ऐसे ही पढ़ते रहिये, अपनी टिम्पनिया और मुझे प्रेरणा देते रहिये ।
धन्यवाद :-)
महा-शिवरात्रि पर्व की सभी को बधाई !
जिंदगी वीरान सी थी,
दिल भी था कहीं बंजर,
खालीपन सा था कहीं,
तुम्हारे बिना मेरे अन्दर।

तमन्ना थी की तुम आओ,
मेरे हर सवालो के जवाब बनकर,
तुम बूँद बनकर समां जाओ मुझमे,
जैसे की मैं हूँ एक खाली समंदर।

मेरी सारी बाते बिना बोले समझ जाओ ,
केवल मेरी धडकनों को सुनकर ,
आ जाओ मेरी जिंदगी में ऐसे,
आती है जैसे बदलो से सूरज की किरने चंनकर।

अब तो बस इंतज़ार है , उस पल का...
नजाने कब वो आये हसीं मंज़र ...
क्यूँ आंसुओ से गम धुल नहीं पाते ?
क्यूँ बारिश की बूंदों के साथ वो घुल नहीं जाते ?
काश की उन्हें भी कुछ बहा ले जाती ,
तो कम से कम वो गम हमे याद तो न आती ...
क्यूँ ये डर मेरे अन्दर मौजूद है ?
क्यूँ इसका अब भी मुझमे वजूद है ?
काश की कोई इसे भी अपने साथ ले जाती ,
तो कम से कम ये डर मुझे इतना तो नहीं सताती...
तू ज़िन्दगी का बन, ये ज़िन्दगी तेरी बन जाएगी,
इसका हर पल जिंदादिली से जीता जा,
ये ज़िन्दगी युहि कट जाएगी।

मत भाग इसके पीछे तू, न ज़िन्दगी को पीछे छोड़,
गर तू चलेगा साथ इसके, ये साथ तेरा निभाएगी।
तू ज़िन्दगी का बन, ये ज़िन्दगी तेरी बन जाएगी।

ऐ जिंदगी मुझे कहाँ ले आई तू !!

ऐ जिंदगी मुझे कहाँ ले आई तू,
मंजिलो की तलाश में भंवरा बन,
इस डगर उस गली मंदरायी तू
कभी गम के अँधेरे बनकर छायी तू ,
तो कभी ख़ुशी के आंसू बनकर,
आँखों से छलक आई तू
कभी हार से मात खायी तू ,
तो कभी जीत का विश्वास बनकर आई तू
कभी निराशाओं से डरकर घबरायी तू ,
तो कभी आशाओ के इन्द्रधनुष
बनकर निकल आई तू
ऐ जिंदगी मुझे कहाँ ले आई तू ,
मंजिलो की तलाश में भंवरा बन ,
इस डगर उस गली मंदरायी तू
कभी अपनी दुनिया से बाहर आकर तो देखिये,
कभी हमारी दुनिया अपनाकर तो देखिये,
खो जायेंगे इसकी शामो सहर में आप,
कभी हमारे साथ मुस्कुरा कर तो देखिये। :-)

Keep Smiling Always :-D
Happy New Year to All of You !!

दूरियां

दिल को इस बात का आज एहसास हो रहा है,
कोई अपना सा लोगो की भीड़ में कहीं खो रहा है,
चाह कर भी नहीं रोक पा रही हूँ मैं उसे,
बस हर पल वो मुझसे दूर, बहुत दूर हो रहा है ...

आज ये रिश्तो की डोर मुझसे नहीं संभल रही है,
दूरियां अब डर बनकर क्यूँ दिल में पल रही है,
आलम ये है की बस उस डोर के टूटने का इंतज़ार हो रहा है,
दिल को इस बात का आज एहसास हो रहा है ...

माना की इसमें गलती कुछ हमारी, कुछ तुम्हारी होगी,
पर जो रिश्ता टूटेगा, वो तो दोस्ती हमारी होगी,
कुछ भी तो नहीं रह जायेगा फिर हमारे बीच,
जो कुछ रहेगा वो तो दूरियों की बड़ी खाई होगी ...

कहने को तो दूर हो जायेंगे तुमसे हम,
पर उन दूरियों में भी तुमको ही पाएंगे हम,
हाल तो कुछ ऐसा होगा हमारा कि,
भूल कर भी तुमको न भूल पाएंगे हम...

दिल को इस बात का आज एहसास हो रहा है ,
कोई अपना सा लोगो कि भीड़ में कहीं खो रहा है ,
चाह कर भी नहीं रोक पा रही हूँ मैं उसे और ...
न चाहते हुए भी कहीं न कहीं मेरा दिल रो रहा है।
दुनिया की इस भीड़ में खो जाने का मन करता है,
कौन हूँ में ये तक भूल जाने का मन करता है,
अपनी परछाई तक से दूर हो जाने का मन करता है,
एक कोने में खुद में सिमट जाने का मन करता है,
कभी कभी बस युही रो जाने का मन करता है,
दुनिया की इस भीड़ में बस खो जाने का मन करता है...

ऐसा क्यूँ होता है ...

ऐसा क्यूँ होता है ...
जब हम चाहते है तारो की बरात ,
हमे मिलता है तनहाइयो का साथ।

जब हम चाहते है चाँद को छूना,
हमे मिलता है एक अँधेरा कोना।

जब हम चाहते है सूरज का साथ ,
हमे मिलती है काली अमावास की एक रात ।

जब हम चाहते है खुलकर रोना,
हमे पड़ता है अपनी सिसकियों को भी दबाना।

जब हम चाहते है चाहते है तलवार से खेलना,
हमे मिलता है सुई सा एक खिलौना।

जब हम चाहते है लोगो से मिलना,
हमे मिलता है चारदिवारियो में एक कोना।

जब हम चाहते है बच्चो के संग खेलना ,
हमे मिलता है एक बच्चे का पालना।

जब हम चाहते है अपनी दिल की बात बताना ,
हमे मिलता है सरे समाज से ताना।

जब हम चाहते है अपनों का साथ,
हमे मिलता है कोई पराया हाथ।

क्या किसी इंसान से गलती नही होती
या फ़िर हम इंसान ही नही होते
तो क्यूँ किसी की गलती पर हमे पड़ता है पछताना
गलती किसी और की और सज़ा हमे पड़ता है भुगतना
ऐसा क्यूँ होता है ...
ऐसा क्यूँ होता है ...

इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो

इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो,
आगे राह कैसी होगी ये मत सोचो,
केवल अपनी मंजिल की तरफ चलते चलो,
इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो

राहों
में मिलने वाले काँटों से मत डरो,
होते
हैं गुलशन में फूलो के साथ काँटे भी,
अगर अभी तक मिले हैं काँटे तो,
उन फूलों की तलाश में चलते चलो,
इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो ।

राहों
में मिलेंगे जाने कितने नए चेहरे,
पर
सभी एक मोड़ पर छोड़ जायेंगे तुम्हें अकेले,
फिर भी कभी अकेलेपन से शिकायत मत करो,
आखिर इसी ने तो तुम्हारा साथ दिया हर मोड़ पर,
अपने
पराये तो जिंदगी के साथ लगे रहते हैं,
अगर
अभी तक मिले हैं पराये तो,
उस
एक 'अपने' की तलाश में चलते चलो,
इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो

हर दुःख के बाद दिखाई देता है सुख का चेहरा भी,
हर
काली रात के बाद आता है एक नया सवेरा भी,
अगर
तुम्हारी राह में छाए हैं काले घने बादल,
फिर
भी तुम मत रुको क्यूंकि अभी,
घने
बादलों के बीच छुप गया है सूरज,
अगर
अभी तक मिले हैं बादल तो,
उन
बादलों के बीच सूरज की तलाश में चलते चलो,
इस
जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो

चलते चलते यूहि एक नज़र इधर भी पड़ गई ...


चिंतन की अवस्था में ...


चीटियों का घर ...










"दोस्ती"

एक उदासी सी थी जीवन में

न जाने क्यूँ एक खालीपन सा था

होठो पर हसी तो ठहरी थी पर

न जाने क्यूँ भारी मन सा था

ढूंढ रही थी मेरी निगाहे किसी को

पर किसी की निगाहों में वो अपनापन सा न था।



अचानक दूर से एक चेहरा आता दिखाई दिया

सादगी भरा जिसमे वो अपनापन सा दिखाई दिया

सामने आते ही उसने अपने हाथो को मेरे आगे बढ़ा दिया

जिसे मैंने भी थामने की कोशिश की

और तब शुरुआत हुई एक नए रिश्ते की

जिसे हमने 'दोस्ती' का नाम दिया।

यूँ तो चले हम भी थे खुशियों की तलाश में,
लेकिन हमे गम ही मिले खुशियों के लिबास में,
कुछ खुशिया भी मिली लेकिन जो गम मिले,
ज़माने लग गए उन गमो के हिसाब में।

"इंतज़ार"

आपको देखू तो दिल को थोड़ी रहत मिले,
आपके कदमो की एक तो आहट मिले,
इंतज़ार है न जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...


गुज़र जाते है आप मुझे गैर समझ कर
काश की मुझे भी आपकी नज़रे इनायत मिले,
इंतज़ार है न जाने कब से मुझे ,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...

भूलकर ख़ुद को भी डूब जाऊ मैं आपकी निगाहों में ,
एक ऐसा पल जो कभी क़यामत मिले,
उस घड़ी का इंतज़ार करेंगे हम ज़िन्दगी भर ,
काश की आपके जीवन का एक पल हमें अमानत मिले ...

अपनी चाहत को हम कभी ज़ाहिर ना कर पाएंगे,
पर मेरी चाहत की आपको कुछ तो सुगबुगाहट मिले,
इंतज़ार है ना जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...

कभी तो मुझे भी आपके रिश्तो की गरमाहट मिले,
जितना चाहते हैं हम आपको,
हमें भी उतनी ही चाहत मिले,
इंतज़ार है ना जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...

इल्तजा है बस इतनी खुदा से हमारी ,
आपको आपकी हर चाहत मिले,
जिस एक मुस्कराहट को तरसे हैं हम,
आपको ज़िन्दगी भर वो मुस्कराहट मिले,
इंतज़ार है ना जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...

"ज़िन्दगी"

कैसी पहेली है जिंदगी,
कभी लगती है दुश्मन... तो
कभी अपनी सहेली है जिंदगी।

कभी लगती है पहाड़ सी बोझ ... तो ,
कभी एक अठखेली है ज़िन्दगी।

कभी मेरे से बहुत दूर ... तो,
कभी मेरे साथ ही हो ली है ज़िन्दगी।
न जाने कैसी पहेली है ज़िन्दगी??

कभी तो यह एक समुन्दर की मौज है...तो
कभी यह न ख़तम होने वाली एक खोज है ।

कभी तो शांत, सुकून से बहती नदी की एक धारा है,
जिसके साथ बहने का एक अपना ही मज़ा है ...तो,
कभी यह एक तूफ़ान सी हो जाती है,
जिसके साथ बहना भी एक सज़ा है...

कभी तो एक बहाव सी है ज़िन्दगी...तो,
कभी एक ठहराव सी है ज़िन्दगी ।

कभी तो यह ना ख़तम होने वाली काली रात सी लगती है ...तो ,
कभी यह दो दिलों के बीच चलने वाली बात सी लगती है।

कभी तो यह कमज़ोर सी दिखती है ज़िन्दगी ...तो,
कभी इसकी ज़ोर भी दिखती है ।

आख़िर में और क्या कहें , क्या है यह ज़िन्दगी...
अन्दर से कुछ और ... और बाहर से कुछ और है ज़िन्दगी।

 

About Me

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..Discovering within... ;) Well I have completed my Integrated B.Tech-M.Tech (Biotech) and now working as CSIR-SRF in BIT, Mesra.Though I am very naive to write poems, but I found this medium the best to express the feelings (mine as well as others). So your valuable suggestions/comments are most welcome :-)

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