..... कुछ बूँदें मेरे मन के सागर से

इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो

इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो,
आगे राह कैसी होगी ये मत सोचो,
केवल अपनी मंजिल की तरफ चलते चलो,
इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो

राहों
में मिलने वाले काँटों से मत डरो,
होते
हैं गुलशन में फूलो के साथ काँटे भी,
अगर अभी तक मिले हैं काँटे तो,
उन फूलों की तलाश में चलते चलो,
इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो ।

राहों
में मिलेंगे जाने कितने नए चेहरे,
पर
सभी एक मोड़ पर छोड़ जायेंगे तुम्हें अकेले,
फिर भी कभी अकेलेपन से शिकायत मत करो,
आखिर इसी ने तो तुम्हारा साथ दिया हर मोड़ पर,
अपने
पराये तो जिंदगी के साथ लगे रहते हैं,
अगर
अभी तक मिले हैं पराये तो,
उस
एक 'अपने' की तलाश में चलते चलो,
इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो

हर दुःख के बाद दिखाई देता है सुख का चेहरा भी,
हर
काली रात के बाद आता है एक नया सवेरा भी,
अगर
तुम्हारी राह में छाए हैं काले घने बादल,
फिर
भी तुम मत रुको क्यूंकि अभी,
घने
बादलों के बीच छुप गया है सूरज,
अगर
अभी तक मिले हैं बादल तो,
उन
बादलों के बीच सूरज की तलाश में चलते चलो,
इस
जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो

2 comments:

Rohit Singh said...

raah kabhi rukti nahi neha....sahi hai ek hi ved vakya yaad aata hai....Chareveti Chareveti....

Neha said...

:-)

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..Discovering within... ;) Well I have completed my Integrated B.Tech-M.Tech (Biotech) and now working as CSIR-SRF in BIT, Mesra.Though I am very naive to write poems, but I found this medium the best to express the feelings (mine as well as others). So your valuable suggestions/comments are most welcome :-)

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