ऐसा क्यूँ होता है ...
जब हम चाहते है तारो की बरात ,
हमे मिलता है तनहाइयो का साथ।
जब हम चाहते है चाँद को छूना,
हमे मिलता है एक अँधेरा कोना।
जब हम चाहते है सूरज का साथ ,
हमे मिलती है काली अमावास की एक रात ।
जब हम चाहते है खुलकर रोना,
हमे पड़ता है अपनी सिसकियों को भी दबाना।
जब हम चाहते है चाहते है तलवार से खेलना,
हमे मिलता है सुई सा एक खिलौना।
जब हम चाहते है लोगो से मिलना,
हमे मिलता है चारदिवारियो में एक कोना।
जब हम चाहते है बच्चो के संग खेलना ,
हमे मिलता है एक बच्चे का पालना।
जब हम चाहते है अपनी दिल की बात बताना ,
हमे मिलता है सरे समाज से ताना।
जब हम चाहते है अपनों का साथ,
हमे मिलता है कोई पराया हाथ।
क्या किसी इंसान से गलती नही होती
या फ़िर हम इंसान ही नही होते
तो क्यूँ किसी की गलती पर हमे पड़ता है पछताना
गलती किसी और की और सज़ा हमे पड़ता है भुगतना
ऐसा क्यूँ होता है ...
ऐसा क्यूँ होता है ...
इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो
इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो,
आगे राह कैसी होगी ये मत सोचो,केवल अपनी मंजिल की तरफ चलते चलो,
राहों में मिलने वाले काँटों से मत डरो,
होते हैं गुलशन में फूलो के साथ काँटे भी,
राहों में मिलेंगे जाने कितने नए चेहरे,
पर सभी एक मोड़ पर छोड़ जायेंगे तुम्हें अकेले,
फिर भी कभी अकेलेपन से शिकायत मत करो,
आखिर इसी ने तो तुम्हारा साथ दिया हर मोड़ पर,
अपने पराये तो जिंदगी के साथ लगे रहते हैं,
अगर अभी तक मिले हैं पराये तो,
उस एक 'अपने' की तलाश में चलते चलो,
इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो।
हर दुःख के बाद दिखाई देता है सुख का चेहरा भी,
हर काली रात के बाद आता है एक नया सवेरा भी,
अगर तुम्हारी राह में छाए हैं काले घने बादल,
फिर भी तुम मत रुको क्यूंकि अभी,
घने बादलों के बीच छुप गया है सूरज,
अगर अभी तक मिले हैं बादल तो,
उन बादलों के बीच सूरज की तलाश में चलते चलो,
इस जहाँ में जहाँ तक जगह मिले बढ़ते चलो।
"दोस्ती"
एक उदासी सी थी जीवन में
न जाने क्यूँ एक खालीपन सा था
होठो पर हसी तो ठहरी थी पर
न जाने क्यूँ भारी मन सा था
ढूंढ रही थी मेरी निगाहे किसी को
पर किसी की निगाहों में वो अपनापन सा न था।
अचानक दूर से एक चेहरा आता दिखाई दिया
सादगी भरा जिसमे वो अपनापन सा दिखाई दिया
सामने आते ही उसने अपने हाथो को मेरे आगे बढ़ा दिया
जिसे मैंने भी थामने की कोशिश की
और तब शुरुआत हुई एक नए रिश्ते की
जिसे हमने 'दोस्ती' का नाम दिया।
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कविता
यूँ तो चले हम भी थे खुशियों की तलाश में,
लेकिन हमे गम ही मिले खुशियों के लिबास में,
कुछ खुशिया भी मिली लेकिन जो गम मिले,
ज़माने लग गए उन गमो के हिसाब में।
लेकिन हमे गम ही मिले खुशियों के लिबास में,
कुछ खुशिया भी मिली लेकिन जो गम मिले,
ज़माने लग गए उन गमो के हिसाब में।
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ज़िन्दगी
"इंतज़ार"
आपको देखू तो दिल को थोड़ी रहत मिले,
आपके कदमो की एक तो आहट मिले,
इंतज़ार है न जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...
गुज़र जाते है आप मुझे गैर समझ कर
काश की मुझे भी आपकी नज़रे इनायत मिले,
इंतज़ार है न जाने कब से मुझे ,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...
भूलकर ख़ुद को भी डूब जाऊ मैं आपकी निगाहों में ,
एक ऐसा पल जो कभी क़यामत मिले,
उस घड़ी का इंतज़ार करेंगे हम ज़िन्दगी भर ,
काश की आपके जीवन का एक पल हमें अमानत मिले ...
अपनी चाहत को हम कभी ज़ाहिर ना कर पाएंगे,
पर मेरी चाहत की आपको कुछ तो सुगबुगाहट मिले,
इंतज़ार है ना जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...
कभी तो मुझे भी आपके रिश्तो की गरमाहट मिले,
जितना चाहते हैं हम आपको,
हमें भी उतनी ही चाहत मिले,
इंतज़ार है ना जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...
इल्तजा है बस इतनी खुदा से हमारी ,
आपको आपकी हर चाहत मिले,
जिस एक मुस्कराहट को तरसे हैं हम,
आपको ज़िन्दगी भर वो मुस्कराहट मिले,
इंतज़ार है ना जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...
आपके कदमो की एक तो आहट मिले,
इंतज़ार है न जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...
गुज़र जाते है आप मुझे गैर समझ कर
काश की मुझे भी आपकी नज़रे इनायत मिले,
इंतज़ार है न जाने कब से मुझे ,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...
भूलकर ख़ुद को भी डूब जाऊ मैं आपकी निगाहों में ,
एक ऐसा पल जो कभी क़यामत मिले,
उस घड़ी का इंतज़ार करेंगे हम ज़िन्दगी भर ,
काश की आपके जीवन का एक पल हमें अमानत मिले ...
अपनी चाहत को हम कभी ज़ाहिर ना कर पाएंगे,
पर मेरी चाहत की आपको कुछ तो सुगबुगाहट मिले,
इंतज़ार है ना जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...
कभी तो मुझे भी आपके रिश्तो की गरमाहट मिले,
जितना चाहते हैं हम आपको,
हमें भी उतनी ही चाहत मिले,
इंतज़ार है ना जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...
इल्तजा है बस इतनी खुदा से हमारी ,
आपको आपकी हर चाहत मिले,
जिस एक मुस्कराहट को तरसे हैं हम,
आपको ज़िन्दगी भर वो मुस्कराहट मिले,
इंतज़ार है ना जाने कब से मुझे,
काश की मुझे आपकी एक मुस्कराहट मिले ...
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कविता
"ज़िन्दगी"
कैसी पहेली है जिंदगी,
कभी लगती है दुश्मन... तो
कभी अपनी सहेली है जिंदगी।
कभी लगती है पहाड़ सी बोझ ... तो ,
कभी एक अठखेली है ज़िन्दगी।
कभी मेरे से बहुत दूर ... तो,
कभी मेरे साथ ही हो ली है ज़िन्दगी।
न जाने कैसी पहेली है ज़िन्दगी??
कभी तो यह एक समुन्दर की मौज है...तो
कभी यह न ख़तम होने वाली एक खोज है ।
कभी तो शांत, सुकून से बहती नदी की एक धारा है,
जिसके साथ बहने का एक अपना ही मज़ा है ...तो,
कभी यह एक तूफ़ान सी हो जाती है,
जिसके साथ बहना भी एक सज़ा है...
कभी तो एक बहाव सी है ज़िन्दगी...तो,
कभी एक ठहराव सी है ज़िन्दगी ।
कभी तो यह ना ख़तम होने वाली काली रात सी लगती है ...तो ,
कभी यह दो दिलों के बीच चलने वाली बात सी लगती है।
कभी तो यह कमज़ोर सी दिखती है ज़िन्दगी ...तो,
कभी इसकी ज़ोर भी दिखती है ।
आख़िर में और क्या कहें , क्या है यह ज़िन्दगी...
अन्दर से कुछ और ... और बाहर से कुछ और है ज़िन्दगी।
कभी लगती है दुश्मन... तो
कभी अपनी सहेली है जिंदगी।
कभी लगती है पहाड़ सी बोझ ... तो ,
कभी एक अठखेली है ज़िन्दगी।
कभी मेरे से बहुत दूर ... तो,
कभी मेरे साथ ही हो ली है ज़िन्दगी।
न जाने कैसी पहेली है ज़िन्दगी??
कभी तो यह एक समुन्दर की मौज है...तो
कभी यह न ख़तम होने वाली एक खोज है ।
कभी तो शांत, सुकून से बहती नदी की एक धारा है,
जिसके साथ बहने का एक अपना ही मज़ा है ...तो,
कभी यह एक तूफ़ान सी हो जाती है,
जिसके साथ बहना भी एक सज़ा है...
कभी तो एक बहाव सी है ज़िन्दगी...तो,
कभी एक ठहराव सी है ज़िन्दगी ।
कभी तो यह ना ख़तम होने वाली काली रात सी लगती है ...तो ,
कभी यह दो दिलों के बीच चलने वाली बात सी लगती है।
कभी तो यह कमज़ोर सी दिखती है ज़िन्दगी ...तो,
कभी इसकी ज़ोर भी दिखती है ।
आख़िर में और क्या कहें , क्या है यह ज़िन्दगी...
अन्दर से कुछ और ... और बाहर से कुछ और है ज़िन्दगी।
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