एक उदासी सी थी जीवन में
न जाने क्यूँ एक खालीपन सा था
होठो पर हसी तो ठहरी थी पर
न जाने क्यूँ भारी मन सा था
ढूंढ रही थी मेरी निगाहे किसी को
पर किसी की निगाहों में वो अपनापन सा न था।
अचानक दूर से एक चेहरा आता दिखाई दिया
सादगी भरा जिसमे वो अपनापन सा दिखाई दिया
सामने आते ही उसने अपने हाथो को मेरे आगे बढ़ा दिया
जिसे मैंने भी थामने की कोशिश की
और तब शुरुआत हुई एक नए रिश्ते की
जिसे हमने 'दोस्ती' का नाम दिया।
3 comments:
अच्छी रचना। बधाई।
ji dhanyavaad :-)
udassi ko dho daliye.....dosti kar daliye....bhagwaan ki bheji nemat hai...
bdaia kavita hai...
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