जिंदगी वीरान सी थी,
दिल भी था कहीं बंजर,
खालीपन सा था कहीं,
तुम्हारे बिना मेरे अन्दर।
तमन्ना थी की तुम आओ,
मेरे हर सवालो के जवाब बनकर,
तुम बूँद बनकर समां जाओ मुझमे,
जैसे की मैं हूँ एक खाली समंदर।
मेरी सारी बाते बिना बोले समझ जाओ ,
केवल मेरी धडकनों को सुनकर ,
आ जाओ मेरी जिंदगी में ऐसे,
आती है जैसे बदलो से सूरज की किरने चंनकर।
अब तो बस इंतज़ार है , उस पल का...
नजाने कब वो आये हसीं मंज़र ...
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7 comments:
खूबसूरत आह्वान और सुन्दर रचना
acha laga pad kar
amrit'wani'
http://kavyakalash.blogspot.com/
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
भगवान करे इंतजार जल्द खत्म हो . चाहे किसी का हो...इंतजार कभी किसी का अंतहीन न हो..इंतजार में जो मजा है..कभी-कभी सजा बन जाती है..
"मेरी सारी बाते बिना बोले समझ जाओ"
सोच और रचना दोनों सार्थक - हार्दिक शुभकामनाएं
ये ब्लॉग छोड़ दिया है क्या। जो नजर नहीं आ रहीं।
bahut sundar rachna...
Meri Nai Kavita padne ke liye jaroor aaye..
aapke comments ke intzaar mein...
A Silent Silence : Khaamosh si ik Pyaas
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