कहाँ गया वो बचपन,
भोला सा वो मन ...
वो दादी-नानी की कहानियां,
वो मिट्टी का आँगन...
वो घर-घर खेलना
गुड्डे-गुड़ियों की शादी रचाना
वो दोस्तों के साथ लड़ना
किसी से रूठना, किसी को मनाना ...
वो बारिशों में भीगना
वो कागज़ की नाव को तैराना
वो मेलों में घूमने का आनंद उठाना
और सर्कस की भीड़ में खो जाना
वो आइसक्रीम देखकर खुश हो जाना
वो चाकलेट्स के लिए जिद्द मानना
वो पापा की डर से पढ़ना
वो मम्मी से मार खाना
वो भैया से बाते छुपाना
और दीदी को बताना ...
कहाँ गया वो बचपन,
भोला सा वो मन ...
वो रात तो भूतो से डरना
और मम्मी से लिपट कर सोना
अब तो बस इस भागती दौड़ती जिंदगी में
जो बच गया है सोचने को
वो है बचपन की यादों का खिलौना....
9 comments:
बहुत ही अच्छा लिखा है नेहा..... सच आज वो मासूम बचपन कहीं खो गया है....
बस, यादें शेष रह जाती हैं.
KOI LOTA DE MERE BITE HUE DIN ...!
BACHPAN KI SER KARANE KE LIYE DHANYAWAD..!
bahut sunder ... bachpan ki yaadein taaza ho gayi... dhanyawaad
a nostalgic peep into childhood....
nice poem!
ऐसा लगा मानो बचपन के उन जादुई लम्हों का झरोखा अनायास ही खुल गया हो और लगा कि उस दुनिया की रोशनी से मन के अंधेरे कोने रोशन हो उठे हैं. खूबसूरत अहसासों को पिरोती हुई एक सुंदर भावप्रवण रचना. आभार.
सादर
डोरोथी.
बचपन तो बचपन है .. कौन भूल सकता है भला
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sweet and simple...gud1
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