ऐसा क्यूँ होता है ...
जब हम चाहते है तारो की बरात ,
हमे मिलता है तनहाइयो का साथ।
जब हम चाहते है चाँद को छूना,
हमे मिलता है एक अँधेरा कोना।
जब हम चाहते है सूरज का साथ ,
हमे मिलती है काली अमावास की एक रात ।
जब हम चाहते है खुलकर रोना,
हमे पड़ता है अपनी सिसकियों को भी दबाना।
जब हम चाहते है चाहते है तलवार से खेलना,
हमे मिलता है सुई सा एक खिलौना।
जब हम चाहते है लोगो से मिलना,
हमे मिलता है चारदिवारियो में एक कोना।
जब हम चाहते है बच्चो के संग खेलना ,
हमे मिलता है एक बच्चे का पालना।
जब हम चाहते है अपनी दिल की बात बताना ,
हमे मिलता है सरे समाज से ताना।
जब हम चाहते है अपनों का साथ,
हमे मिलता है कोई पराया हाथ।
क्या किसी इंसान से गलती नही होती
या फ़िर हम इंसान ही नही होते
तो क्यूँ किसी की गलती पर हमे पड़ता है पछताना
गलती किसी और की और सज़ा हमे पड़ता है भुगतना
ऐसा क्यूँ होता है ...
ऐसा क्यूँ होता है ...
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6 comments:
har kiyon ka jawab mil jaye to jeevan aashan nahi ho jaye. yahi to niyati hai jo insaan ko ladne ki prena deti hai....
Aapka sawal kafi gahra hai......Likha kare regular...
बहुत अच्छी कविता।
आपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।
बेहद पसंद आई।
Dhanyavaad sabhi ko :-)
Wonderful...true poet ..Miss Neha :)
अति उत्तम....क्या कहने , बड़ा ही शानदार लिखा है ..
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